इजरायल-ईरान संघर्ष: तनाव का बढ़ता स्तर और अंतर्राष्ट्रीय चिंताएँ

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By Maanav Parmar

इजरायल-ईरान संघर्ष: तनाव का बढ़ता स्तर और अंतर्राष्ट्रीय चिंताएँ

इजरायल और ईरान के बीच चल रहा तनाव एक बार फिर गंभीर रूप ले चुका है। हाल ही में इजरायली हमलों में 215 ईरानी नागरिकों की मौत हो चुकी है, जबकि लगभग 700 लोग घायल हुए हैं। मृतकों में अधिकांश आम नागरिक हैं, हालाँकि 50 से अधिक ईरानी सैनिक भी इन हमलों में मारे गए हैं। इसके जवाब में ईरान ने उत्तर इजरायल के हाइफा शहर पर मिसाइल दागकर तीन इजरायली नागरिकों को मार डाला। इसके बाद इजरायल के रक्षा मंत्री इजराइल काट्ज ने धमकी दी है कि अगर ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनेई ने इजरायल पर मिसाइल दागना जारी रखा, तो तेहरान को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।

पृष्ठभूमि: इजरायल-ईरान विवाद की जड़ें

इजरायल और ईरान के बीच तनाव दशकों पुराना है। 1979 की ईरानी क्रांति के बाद से ही ईरान ने इजरायल को अपना दुश्मन माना है। ईरान की सरकार इजरायल के अस्तित्व को ही नहीं मानती और अक्सर उसे “ज़ायोनी शासन” कहकर संबोधित करती है। वहीं, इजरायल ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अपनी सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा मानता है। दोनों देशों के बीच प्रॉक्सी वॉर (Proxy War) भी चल रहा है, जिसमें ईरान समर्थित गुट जैसे हिज़बुल्लाह, हमास और सीरिया में तैनात ईरानी सैनिक इजरायल के खिलाफ कार्रवाई करते रहते हैं।

हालिया हिंसा का सिलसिला

पिछले कुछ महीनों से इजरायल और ईरान के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। ईरान ने सीरिया और लेबनान के माध्यम से इजरायल पर हमले करने की कोशिश की है, जबकि इजरायल ने ईरानी सैन्य ठिकानों और परमाणु सुविधाओं को निशाना बनाया है। हाल ही में इजरायल ने ईरान के कुछ महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले किए, जिसमें बड़ी संख्या में ईरानी नागरिकों और सैनिकों की जान चली गई।

इसके जवाब में ईरान ने हाइफा शहर पर मिसाइल दाग दी, जिससे तीन इजरायली नागरिकों की मौत हो गई। यह हमला सीधे तौर पर इजरायल के खिलाफ ईरान की आक्रामकता को दर्शाता है। इजरायल के रक्षा मंत्री इजराइल काट्ज ने इस हमले को गंभीरता से लेते हुए चेतावनी दी है कि अगर ईरान ने इजरायल पर हमले जारी रखे, तो तेहरान को इसका भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया

इस बढ़ते तनाव ने पूरे विश्व को चिंता में डाल दिया है। संयुक्त राष्ट्र ने दोनों देशों से शांति बनाए रखने की अपील की है। अमेरिका ने इजरायल का समर्थन करते हुए ईरान की आक्रामक नीतियों की निंदा की है। वहीं, रूस और चीन ने संघर्ष को शांत करने के लिए मध्यस्थता की पेशकश की है।

अरब देशों की प्रतिक्रिया मिली-जुली रही है। सऊदी अरब और UAE जैसे देशों ने हिंसा को रोकने की बात कही है, लेकिन वे सीधे तौर पर ईरान या इजरायल का समर्थन नहीं कर रहे हैं। वहीं, सीरिया और लेबनान जैसे देश ईरान के साथ खड़े हैं।

भविष्य की आशंकाएँ

अगर यह संघर्ष और बढ़ता है, तो पूरे मध्य पूर्व में युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। ईरान के पास लंबी दूरी की मिसाइलें हैं, जो इजरायल के अलावा अमेरिकी ठिकानों तक को निशाना बना सकती हैं। वहीं, इजरायल के पास दुनिया की सबसे मजबूत सेनाओं में से एक है और अमेरिका का पूर्ण समर्थन प्राप्त है।

यदि युद्ध छिड़ जाता है, तो इसका असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा। मध्य पूर्व से तेल की आपूर्ति प्रभावित हो सकती है, जिससे पेट्रोल और डीजल की कीमतें आसमान छू सकती हैं। इसके अलावा, इस क्षेत्र में रह रहे लाखों नागरिकों की जान को भी खतरा होगा।

निष्कर्ष

इजरायल और ईरान के बीच चल रहा यह संघर्ष न केवल दोनों देशों के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को चाहिए कि वह इस मामले में हस्तक्षेप करे और दोनों पक्षों को बातचीत के माध्यम से समाधान निकालने के लिए प्रेरित करे। यदि हिंसा जारी रही, तो इसके भयावह परिणाम हो सकते हैं, जिनकी कीमत आम नागरिकों को चुकानी पड़ेगी।

शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि दोनों देश संयम बरतें और कूटनीतिक समाधान की तलाश करें। अन्यथा, इस संघर्ष की आग पूरे क्षेत्र में फैल सकती है, जिसे रोक पाना मुश्किल हो जाएगा।

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