भारत में प्रजनन दर की असमानता: कारण और प्रभाव
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की 2025 की ‘स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट’ के अनुसार, भारत के विभिन्न राज्यों में प्रजनन दर (Fertility Rate) में भारी अंतर देखने को मिलता है। बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में प्रजनन दर राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है, जबकि दिल्ली, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में यह दर काफी कम है। यह असमानता कई सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कारकों पर निर्भर करती है। इस लेख में हम इन कारणों का विश्लेषण करेंगे और समझेंगे कि कैसे शिक्षा, आर्थिक विकास और सांस्कृतिक मान्यताएँ प्रजनन दर को प्रभावित करती हैं।
भारत में प्रजनन दर का वर्तमान परिदृश्य
भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) वर्तमान में 2.0 के आसपास है, जो प्रतिस्थापन स्तर (Replacement Level) से थोड़ी कम है। हालाँकि, राज्यवार आँकड़े बताते हैं कि यह दर कुछ राज्यों में 3.0 से भी अधिक है, जबकि कुछ में 1.5 से नीचे चली गई है।
उच्च प्रजनन दर वाले राज्य
- बिहार (TFR: ~3.0)
- उत्तर प्रदेश (TFR: ~2.7)
- झारखंड (TFR: ~2.5)
निम्न प्रजनन दर वाले राज्य
- केरल (TFR: ~1.6)
- तमिलनाडु (TFR: ~1.7)
- दिल्ली (TFR: ~1.5)
यह अंतर स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि भारत में जनसांख्यिकीय परिवर्तन (Demographic Transition) एक समान नहीं है।
उच्च प्रजनन दर के प्रमुख कारण
1. निम्न साक्षरता दर और शिक्षा का अभाव
बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों में महिला साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से कम है। शिक्षा का अभाव परिवार नियोजन के बारे में जागरूकता को सीमित करता है। शोध बताते हैं कि जिन क्षेत्रों में महिलाओं की शिक्षा दर कम होती है, वहाँ प्रजनन दर अधिक होती है।
2. आर्थिक पिछड़ापन और गरीबी
ग्रामीण और आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में बच्चों को “श्रमशक्ति” के रूप में देखा जाता है। परिवार अक्सर अधिक बच्चों को जन्म देते हैं ताकि वे कम उम्र में ही काम करके आय अर्जित कर सकें। इसके अलावा, सामाजिक सुरक्षा के अभाव में बुजुर्गों का भरण-पोषण बच्चों पर निर्भर करता है।
3. सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताएँ
कुछ समुदायों में बड़े परिवार को सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है। पुत्र प्राप्ति की चाह भी प्रजनन दर को बढ़ावा देती है, क्योंकि लोग तब तक बच्चे पैदा करते हैं जब तक उन्हें पुत्र की प्राप्ति नहीं हो जाती।
4. स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुँच
ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में परिवार नियोजन सेवाओं (जैसे गर्भनिरोधक, यौन शिक्षा) की कमी के कारण लोग प्राकृतिक रूप से अधिक बच्चे पैदा करते हैं।
निम्न प्रजनन दर के प्रमुख कारण
1. उच्च साक्षरता और महिला सशक्तिकरण
केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में महिला साक्षरता दर अधिक है, जिसके कारण महिलाएँ शिक्षित होकर स्वास्थ्य और परिवार नियोजन के बारे में बेहतर निर्णय लेती हैं।
2. शहरीकरण और आर्थिक विकास
दिल्ली, चेन्नई और बेंगलुरु जैसे महानगरों में लोगों की जीवनशैली व्यस्त होती है। उच्च जीवनयापन लागत और करियर को प्राथमिकता देने के कारण लोग छोटे परिवार को तरजीह देते हैं।
3. देर से शादी और सामाजिक परिवर्तन
शिक्षा और करियर पर ध्यान केंद्रित करने के कारण शहरी क्षेत्रों में लोग देर से शादी करते हैं, जिससे प्रजनन दर कम होती है।
4. सरकारी नीतियों और जागरूकता का प्रभाव
केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में सरकारी स्वास्थ्य अभियानों और यौन शिक्षा कार्यक्रमों ने जनसंख्या नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
प्रजनन दर में अंतर के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
1. जनसांख्यिकीय विभाजन (Demographic Divide)
- उच्च प्रजनन दर वाले राज्यों में युवा आबादी अधिक है, जिससे रोजगार और शिक्षा पर दबाव बढ़ता है।
- निम्न प्रजनन दर वाले राज्यों में बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं पर अतिरिक्त भार पड़ेगा।
2. आर्थिक असमानता
- उच्च प्रजनन दर वाले राज्यों में गरीबी और बेरोजगारी अधिक है, जिससे पलायन बढ़ता है।
- निम्न प्रजनन दर वाले राज्यों में कुशल श्रम की कमी हो सकती है, जिससे अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी।
3. राजनीतिक और नीतिगत चुनौतियाँ
- सरकार को अलग-अलग राज्यों के लिए अलग जनसंख्या नीतियाँ बनानी होंगी।
- स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में अधिक निवेश की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
भारत में प्रजनन दर की असमानता देश के सामाजिक-आर्थिक विकास के विभिन्न चरणों को दर्शाती है। जहाँ एक ओर बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में उच्च प्रजनन दर शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक पिछड़ेपन का संकेत है, वहीं केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में निम्न प्रजनन दर विकास और सशक्तिकरण को दर्शाती है। देश के संतुलित विकास के लिए यह आवश्यक है कि सरकार उच्च प्रजनन दर वाले राज्यों में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसर बढ़ाए, ताकि जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित किया जा सके और आर्थिक समानता सुनिश्चित की जा सके।