विजय माल्या vs अनिल अंबानी: क्या सरकार की नज़र माल्या की प्रॉपर्टी पर थी?

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By Maanav Parmar

विजय माल्या vs अनिल अंबानी: क्या सरकार की नज़र माल्या की प्रॉपर्टी पर थी?

भारत के कॉरपोरेट जगत में दो बड़े नाम—विजय माल्या और अनिल अंबानी—ने बैंकों से हज़ारों करोड़ रुपये के कर्ज़ लिए, लेकिन उन्हें चुकाने में विफल रहे। दोनों ही मामलों में सरकार और बैंकों ने अलग-अलग तरह से प्रतिक्रिया दी। विजय माल्या के मामले में सरकार ने 9,000 करोड़ के घोटाले के बदले 14,100 करोड़ की वसूली की, जबकि अनिल अंबानी के 45,000 करोड़ के कर्ज़ को मात्र 45 करोड़ में सेटल कर दिया गया। इस अंतर ने एक बड़ा सवाल खड़ा किया—क्या सरकार की नज़र माल्या की प्रॉपर्टी पर थी? क्या उनके साथ भेदभाव हुआ?


विजय माल्या का मामला: सख्त कार्रवाई और वसूली

विजय माल्या, जिन्हें “किंग ऑफ गुड टाइम्स” कहा जाता था, ने किंगफिशर एयरलाइंस के जरिए भारतीय बैंकों से 9,000 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज़ लिया। जब कंपनी डूबी, तो माल्या ने कर्ज़ चुकाने से इनकार कर दिया और 2016 में यूके भाग गए। भारत सरकार ने उनके खिलाफ धोखाधड़ी, मनी लॉन्ड्रिंग और गैर-कानूनी संपत्ति हस्तांतरण के मामले दर्ज किए।

सरकार ने माल्या के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की:

  • उनकी संपत्तियाँ जब्त की गईं, जिनमें विलासितापूर्ण घर, कारें और यहाँ तक कि उनकी क्रिकेट टीम (RCB की हिस्सेदारी) भी शामिल थी।
  • 14,100 करोड़ रुपये की वसूली की गई, जो उनके कर्ज़ से भी अधिक थी।
  • एक्स्ट्राडिशन के लिए प्रयास: भारत सरकार ने ब्रिटेन से माल्या को वापस लाने की कोशिश की, और वह अभी भी यूके में कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।

माल्या ने बार-बार शिकायत की कि सरकार ने उन्हें सेटलमेंट का मौका क्यों नहीं दिया, जबकि अनिल अंबानी जैसे उद्योगपतियों को राहत मिली।


अनिल अंबानी का मामला: मात्र 45 करोड़ में 45,000 करोड़ का कर्ज़ माफ

अनिल अंबानी की कंपनियों (रिलायंस कम्युनिकेशन, रिलायंस पावर आदि) ने विभिन्न बैंकों से करीब 45,000 करोड़ रुपये का कर्ज़ लिया, लेकिन वे इसे चुका नहीं पाए। दिवालिया होने के बाद, उनकी कंपनियों ने इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) के तहत सेटलमेंट का रास्ता अपनाया।

इस प्रक्रिया में:

  • केवल 45 करोड़ रुपये में समझौता हुआ, जो कुल कर्ज़ का 0.1% भी नहीं था।
  • बैंकों ने बड़े नुकसान को स्वीकार किया, जबकि अंबानी ने अपनी व्यक्तिगत संपत्ति सुरक्षित रखी।
  • सरकार ने कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की, न ही उनके खिलाफ भगोड़ा घोषित किया गया।

यहाँ सवाल उठता है—क्या अनिल अंबानी को सरकारी संरक्षण मिला? क्या उनके मामले में IBC का इस्तेमाल करके कर्ज़ माफ कर दिया गया, जबकि माल्या के साथ ऐसा नहीं हुआ?


क्या सरकार की नज़र माल्या की प्रॉपर्टी पर थी?

विजय माल्या का यह आरोप कि “सरकार ने मुझे सेटलमेंट का मौका क्यों नहीं दिया?” गंभीर है। कुछ तथ्यों पर गौर करें:

  1. मीडिया और राजनीतिक दबाव:
    • माल्या का मामला बहुत ज्यादा मीडिया कवरेज पाया, जिससे सरकार पर कार्रवाई का दबाव बना।
    • अनिल अंबानी का मामला कम चर्चित रहा, और IBC प्रक्रिया के तहत शांतिपूर्वक निपटा दिया गया।
  2. संपत्ति की प्रकृति:
    • माल्या की संपत्तियाँ अधिक दिखावटी और आकर्षक थीं (जैसे महँगी कारें, विला, क्रिकेट टीम), जिन्हें जब्त करने से सरकार को जनसमर्थन मिला।
    • अंबानी की संपत्तियाँ ज्यादातर बिजनेस एसेट्स में थीं, जिन्हें आसानी से लिक्विडेट नहीं किया जा सकता था।
  3. राजनीतिक संबंध:
    • अनिल अंबानी के राजनीतिक कनेक्शन मजबूत रहे हैं, जिससे उन्हें कानूनी लचीलापन मिला।
    • माल्या पर भगोड़ा का ठप्पा लगाकर सरकार ने उन्हें दोषी साबित करने की कोशिश की।
  4. कानूनी प्रक्रिया में अंतर:
    • माल्या का मामला फ्रॉड और मनी लॉन्ड्रिंग के तहत चला, जिसमें जमानत मिलना मुश्किल था।
    • अंबानी का मामला कॉरपोरेट दिवालियापन के तहत निपटा, जहाँ सेटलमेंट आसान था।

निष्कर्ष: क्या यह भेदभाव था?

सरकार के अलग-अलग रवैये से साफ है कि विजय माल्या के साथ सख्ती बरती गई, जबकि अनिल अंबानी को नरमी मिली। क्या यह इसलिए कि माल्या की संपत्तियाँ जब्त करने में सरकार को राजनीतिक और आर्थिक फायदा दिखा? या फिर अंबानी के मामले में कॉरपोरेट लॉबी का दबाव था?

इस पूरे घटनाक्रम से एक बात स्पष्ट है—भारत की कॉरपोरेट कर्ज़ व्यवस्था में पारदर्शिता और निष्पक्षता की कमी है। जब तक बड़े उद्योगपतियों के लिए एक समान कानून नहीं बनाया जाता, तब तक ऐसे भेदभावपूर्ण मामले सामने आते रहेंगे।

क्या सरकार की नज़र सच में माल्या की प्रॉपर्टी पर थी? इसका जवाब शायद राजनीति और अर्थव्यवस्था के गलियारों में छुपा हुआ है।

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